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________________ 392 जैनतत्त्वादर्श को और मातृमेध में सुलसा को मार के होम करा / मीमांसक मत का यह पिप्पलाद मुख्य आचार्य हुआ। इसका बातली नामा शिष्य हुआ। तब से जीवहिंसा संयुक्त यज्ञ प्रचलित हुए। याज्ञवल्क्य के वेद बनाने में कुछ भी शंका नहीं, क्योंकि वेद में लिखा है-" याज्ञवल्क्येति होवाच" अर्थात् याज्ञवल्क्य ऐसे कहता भया। तथा वेद में जो शाखा है, वे वेदकर्ता मुनियों के ही सबब से है। इस वास्ते जो आवश्यक शास्त्र में लिखा है कि, जीवहिंसा संयुक्त जो वेद हैं, वे सुलसा अरु याज्ञवल्क्यादिकों ने बनाये है, सो सत्य है / क्योंकि कितनीक उपनिषदों में पिप्पलाद का भी नाम है, तथा और मुनियों का भी कितनीक जगे में नाम है। जमदग्नि, कश्यप तो वेदों में खुद नाम से लिखे हैं। तो फिर वेदों के नवीन होने में क्या शंका रहती है। तथा लंका का राजा रावण जब दिविजय करने के वास्ते देशों में चतुरंग दल लेकर राजाओं को अपनी आज्ञा मना रहा था। इस अवसर में नारद मुनि लाठी, सोटे, लात और धूंसे से पीटा हुआ पुकार करता हुआ रावण के पास आया। तब रावणने नारद को पूछा कि, तुझ को किसने पीटा है ? तब नारदने कहा कि, राजपुर नगर में मरुत नामा राजा है, सो मिथ्यादृष्टि है। वो ब्राह्मणाभासों के उपदेश से यज्ञ करने लगा / होम के वास्ते सैनिकों की
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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