________________ पच्छद हो गये। लोक पूछने जैनतत्त्वादर्श मय यज्ञोपवीत बनाये, आगे सादे सूत के बनाये गये। यह यज्ञोपवीत की उत्पत्ति है। भरत के आठ पाट तक तो ब्राह्मणों की भक्ति भरत की तरें करते रहे / पीछे प्रजा भी ब्राह्मणों को भोजन कराने लगी, तब सर्व जगे ब्राह्मण पूजनीक समझे गये / आठमे तीर्थकर श्रीचन्द्रप्रभ स्वामी के वक्त तक सर्व ब्राह्मण व्रतधारी, जैनधर्मी श्रावक रहे / अरु श्रीचन्द्रप्रम भगवान् के पीछे कितनाक काल व्यतीत भये इस भरत खण्ड में जैनमत अर्थात् चतुर्विध संघ और सर्व शास्त्र विच्छेद हो गये। तब तिन ब्राह्मणाभासों को लोक पूछने लगे कि धर्म का स्वरूप हम को बतलाओ। तब तिनोंने जो मन में माना, और अपना जिस में लाभ देखा, सो धर्म बतलाया। अनेक तरें के ग्रंथ बनाये गये। जब नवमे श्रीसुविधिनाथ-पुष्पदंत अरिहंत हुए, तिनों. ने जब फिर जैन धर्म प्रगट करा, तब कितनेक ब्राह्मणाभासोंने न माना, स्वकपोलकल्पित मत ही का कदाग्रह रक्खा, साधुओं के द्वेषी बन गये, चारों वेदों का नाम भी बदल दिया, अरु उन वेदों में मतलब भी और का और लिख दिया। अब चारों वेदों की उत्पत्ति लिखते हैं / जब भरत राजा ने ब्राह्मणों को पूजा, तब दूसरे लोक भी वेदो की उत्पत्ति ब्राह्मणों को बहुत तरे का दान देने लग गये। तब भरत चक्रवतीने श्रीऋषभदेवजी के हम को बता