________________ जैनतत्त्वादर्श पूर्व इसी *प्रन्थ में सांख्यमत विषे लिख आये हैं, वहां से जान लेना। पीछे इनकी संप्रदाय में नामी संख नामा भाचार्य हुआ। तब से मत का नाम सांख्यमत प्रसिद्ध हुआ / वास्तव में सर्व परिव्राजक संन्यासियों के लिंग आचा. रादि धर्म का मूल मरीचि हुआ / इस सांख्यमत का तत्त्व अब भी भगवद्गीता तथा भागवतादि ग्रन्थों में तथा सांख्यमत के शास्त्रों में प्रचलित है। एक जैनमत के बिना सर्व मतों की जड़, इस से समझनी चाहिये / जब श्रीऋषभदेवजी को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था, उसी दिन भरत राजा की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। तब भरतने भरतक्षेत्र के छ खण्डों में राज बनाया, अपनी आज्ञा मनाई, इसी वास्ते इसका नाम भरतखण्ड प्रसिद्ध हुआ। जब भरतने अपने छोटे भाइयों को आज्ञा मनाने वास्ते __ दूत भेजा, तब तिनों ने विचार करा कि ब्राह्मणों की उत्पत्ति राज तो हम को हमारा पिता दे गया है, तो फिर हम भरत की आज्ञा क्योंकर माने ! चलो पिता से कहें। जेकर अपने पिता श्रीऋषभदेवनी कहेंगे कि, तुम भरत की आज्ञा मानो, तब तो हम आज्ञा मान लेवेंगे, जेकर हमारे पिता कहेंगे कि लड़ों, तो हम * चतुर्थ परिच्छेद पृ० 274-290