________________ एकादश परिच्छेद 381 करता है, अरु मैं तो द्रव्य मुंडित हूं, इस वास्ते मुझे उस्तरे पाछने से मस्तक मुंडवाना चाहिये, शिखा भी रखनी चाहिये। 3. साधु तो पांच महाव्रत पालते हैं, अरु मेरे तो सदा स्थूल जीव की हिंसा का त्याग रहे। 4. साधु तो अकिचन है, अर्थात् परिग्रह रहित है, अरु मुझ को एक पवित्रकादि रखनी चाहिये / 5. साधु तो शील से सुगन्धित है, अरु मैं ऐसा नहीं हूं, इस वास्ते मुझे चन्दनादि सुगन्धी लेनी ठीक है। 6. साधु तो मोहरहित है, अरु मैं तो मोह संयुक्त हूं, इस वास्ते मुझे मोहाच्छादित को छत्री रखनी चाहिये / 7. साधु जूते रहित है, मुझ को पगों में कुछ उपानह( जूती) प्रमुख चाहिये / 8. साधु तो निर्मल है, इस वास्ते उसके शुक्लांबर वन हैं, अरु मैं तो क्रोध, मान, माया, अरु लोभ, इन चारों कषायों करके मैला हूं, इस वास्ते मुझे कषाय वस्त्र अर्थात् गेरु के रंगे (भगवें) वस्त्र रखने चाहिये। 9. साधु तो सचित्त जल के त्यागी है, इस वास्ते मै छान के सचित पानी पीऊंगा, स्नान भी करूंगा / इस तरे स्थूलमृषावादादि से भी निवृत्त हुआ / इस प्रकार के मरीचि ने स्वमति से अपनी आजीविका के वास्ते लिंग बनाया, यही लिंग परिब्राजकों का उत्पन्न हुआ। ___ मरीचि भगवान के साथ ही विचरता रहा / तब साधुओं " e से विसदृश लिंग देख के लोग पूछते भए / तब मरीचि sat