________________ 378 जैनतत्त्वादर्श विचरते रहे। तिस अवस्था में कच्छ अरु महाकच्छ के बेटे नमि और विनमिने आकर प्रभु की बहुत सेवा-भक्ति करी / तब धरणेंद्रने प्रज्ञप्त्यादि अडतालीस हजार विद्या( 48000) उनको देकर वैताब्यगिरि की दक्षिण अरु उत्तर, इन दोनों श्रेणिका राज्य दिया, वे सर्व विद्याधर कहलाये। इन ही विद्याधरों की संतानों में रावण, कुंभकर्णादि तथा वाली, सुग्रीवादि और पवन, हनुमानादि सर्व विद्याधर हुए हैं। एकदा छमस्थ अवस्था में श्रीऋषभदेवजी विहार करते हुए बाहुबली की तक्षशिला नगरी में गये। वहां बाहिर बाग में कायोत्सर्ग करके खडे रहे। यह खबर जब बाहुबली को पहुंची तब बाहुबली ने मन में विचार करा कि कल को. बड़े आडम्बर से पिता को वंदना करने को जाऊंगा / प्रभात हुये जब आडम्बर से गया, तब श्रीऋषमदेवजी तो तहां से और कहीं चले गये / तब बाहुबली बहु उदास हुआ / तब श्रीऋषभदेवजी के चरणों की जगा पर धर्मचक्र तीर्थ स्थापन कराया, वो धर्मचक्र तीर्थ, विक्रम राजा तक तो रहा, पीछे जब पश्चिम देश में नवे मतमतांतर खड़े हुए, तब से वो तीर्थ नष्ट हो गया। तब पीछे श्रीऋषभदेवजी बाल्हीक, जोनक, अडम्ब, इल्लाक, सुवर्ण भूमि, पल्लवकादि देशों में विचरने लगे। तहां जिनों ने श्रीऋषभदेवजी का दर्शन करा वो सब भद्रक स्वभाववाले हो गये / अरु शेष जो रहे, वो सब