________________ 376 जैनंतवादर्श का कर्ता ब्रह्मा आदि, विष्णुं आदि, योगी आदि, भगवान् आदि, अहंत आदि तीर्थकर, प्रथम बुद्ध, सर्व बड़ा इत्यादि जो नाम और महिमा गाते हैं, वे सर्व श्रीऋषमदेवजी के ही गुणानुवाद हैं, और कोई सृष्टि का कर्चा नहीं है। मूर्ख और अज्ञानियों ने स्वकपोलकल्पित शास्त्रों में ईश्वर विषय में मनमानी कल्पना कर लीनी है / उस कल्पना को बहुत जीव आज ताई सच्ची मानते चले आये हैं। क्योंकि सर्व मत जैन के विना ब्राह्मणों ने ही प्रायः चलाये हैं, इस वास्ते ब्राह्मण ही मतों के विश्वकर्मा हैं। अरु लौकिक शास्त्रों में जो कुछ है, सो ब्राह्मणों ही के वास्ते है। ब्राह्मण भी लौकिक शास्त्रों ने तार दिये, क्योंकि शास्त्र बनानेवालों के संतानादि खूब खाते, पिते और आनन्द करते हैं / इन ब्राह्मणों की तथा वेदों की उत्पत्ति जैसे आवश्यक आदिक शास्त्रों में लिखी है, तैसे भव्य जीवों के जानने वास्ते यहां मैं भी लिखूगा। निदान सर्व जगत् का व्यवहार चला कर, भरत पुत्र को विनीतानगरी का राज्य दिया, अरु बाहुबली पुत्र को तक्षशिला का राज्य दिया, शेष पुत्रों को और 2 देशों का राज्य दिया / उन ही पुत्रों के नाम से बहुत देशों का नाम भी तैसा ही पड़ गया, जैसे अंगदेश, बंगदेश, मगधदेश, इत्यादि देशों का नाम भी पुत्रों के नाम से पड़ गया।