________________ 372 जैनतत्त्वादर्श के अवांतर भेद वीस वीस हैं, इस वास्ते सर्व मिल कर एक सौ शिल्प उत्पन्न हुए। अब कर्मद्वार लिखते हैं। कर्मद्वार में खेती करनी, वाणिज्य करना, धन का ममत्व करना, इत्यादि कर्म बताये। प्रथम मट्टी के संचयों में भर के, अहरन, हथोड़ी प्रमुख बनाये, पीछे उन से सर्व वस्तु काम लायक बनाई गई। ___ तथा भरतादि प्रजालोगों को बहत्तर कला सिखलाई, तथा स्त्रियों को चौसठ कला सिखलाई / इन सब के नाम मात्र ऐसे हैं। 1. लिखने की कला, 2. पढ़ने की कला, 3. गणितकला, 4. गीतकला, 5. नृत्यकला, 6. ताल बजाना, पुरुष की 72 7. पटह बजाना, 8. मृदंग बजाना, 9. वीणा __ कलाएं बजाना, 10. वंशपरीक्षा, 11. भेरीपरीक्षा, 12. गजपरीक्षा, 13. तुरंगशिक्षा, 14. धातुदि, 15. दृष्टिवाद, 16. मन्त्रवाद, 17, बलीपलितविनाशन, 18. रत्नपरीक्षा, 19. नारीपरीक्षा, 20. नरपरीक्षा, 21. छंदबंधन, 22. तर्कजस्पन, 23. नीतिविवार, 24. तत्त्वविचार, 25. कविशक्ति, 26. ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान, 27. वैद्यक, 28. षड्भाषा, 29. योगाभ्यास, 30. रसायनविधि, 31. अंजनविधि, 32. अठारह प्रकार की लिपि, 33. स्वप्नलक्षण, 34. इन्द्रजालदर्शन, 35. खेती करनी, 36. वाणिज्य करना, 37. राजा की सेवा, 38. शकुन विचार, 39, वायुस्तंभन,