________________ .30 जैनतत्त्वादर्श उपवंश कहलाया, तथा जिनको श्रीऋषभदेवने गुरु अर्थात् ऊंचे बडे करके माना तिनों का भोगवंश कहलाया, तथा जो श्रीऋषभदेवजी के मित्र थे, उनों का राजन्यवंश नाम रक्खा गया, तथा शेष जो रहे तिनका क्षत्रियवंश हुमा / अथ आहार की विधि कहते हैं। जब कल्पवृक्षों के फलों का अभाव हुआ, तब पक्काहार का खाना भोजन पकाने किस तरें से. हुमा ! सो लिखते हैं। काल आदि कर्मकी के प्रभाव से कल्पवृक्ष फल देने से रह गये, शिक्षा तब लोक और वृक्षों के कंद, मूल, पत्र, फूल, फल खाने लगे, कई एक इक्षु का रस पीने लगे, तथा सतरा जात का कच्चा अन्न खाने लगे। परन्तु कितनेक दिनों पीछे कच्चा अन्न उनको पाचन न होने से ऋषभदेवजीने उनको कहा कि तुम हाथों से मसल के तूतड़ा दूर करके खाओ। फिर कितनेक दिनों पीछे बैसे भी पाचन न होने लगा, तो फिर दूसरी तरें कच्चा अन्न खाने की विधि बताई। ऐसे बहुत तरे से कच्चा अन्न खाने की विधि बताई, तो भी कालदोष से अन्न पाचन न होने लगा। इस अवसर में जंगलों में बांसादि के घिसने से अग्नि उत्पन्न हुआ। प्रश्न-तुम कहते हो कि ऋषभदेवजी को जातिस्मरण और अवधि ज्ञान था, तो फिर ऋषभदेवजीने प्रथम से ही अग्नि बनाना, उस अग्नि.से. अन्न रांध के खाना क्यों न बतलाया!