SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश परिच्छेद 363 सुन कर वे मिथुनक बोले कि, ऐसा राजा हमारा भी हो नावे / तब ऋषभदेवजी बोले जो तुमारी मनशा ऐसी है, तो नाभिकुलकर से याचना करो / पीछे तिनों ने नाभिकुलकर से विनति करी / तब नाभिकुलकरने कहा, जाओ ऋषभदेवजी तुमारा राजा हुआ। तब वे मिथुनक ऋषभदेव का राज्याभिषेक करने वास्ते पमिनी सरोवर में गये। इस अवसर में इन्द्र का आसन कंपमान हुआ। तब अवधिज्ञान से राज्याभिषेक का अवसर जान के यहां आकर श्रीऋषभदेव का राज्याभिषेक करा / मुकुटादि सर्व अलंकार जो कुछ राजा के योग्य थे, सो पहिराये। इस अवसर में मिथुनक लोक पद्मसरोवर से नलिनी कमलों में पानी लाये / उनों ने आकर जब श्रीऋषभ. देवजी को अलंकृत देखा, तब सब ने चरणों ऊपर जल गेर दिया / तब इन्द्र ने मन में चिंता करी कि ये बडे विनीत पुरुष हैं। ऐमा जान कर वैश्रमण को आज्ञा दीनी कि इन विनीतों के रहने वास्ते विनीता नामा नगरी वसाओ। तब विनीता नगरी वैश्रमणने वसाई / इस का स्वरूप शत्रुजयमाहास्य से जान लेना। अथ संग्रह के वास्ते हाथी, घोडे, गौ प्रमुख श्रीऋषभदेव के राज्य में वनों से पकड़े गये। तब श्रीऋषमचार वंश देव ने चार प्रकार का संग्रह करा-१. उग्रा, 2. भोगा, 3. राजन्या, 1. क्षत्रिया / उन में जिन को कोटवाल की पदवी दीनी, सो दण्ड के करने से
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy