________________ एकादश परिच्छेद 365 तिस नामिकुलकर की मरुदेवी नामक भार्या की कूख में आपाड़ वदि चौथ की रात्रि को सर्वार्थश्रीऋषभदेव का सिद्ध देवलोक से च्यव के ऋषभदेव का जन्म जीव, गर्भ में पुत्रपने उत्पन्न हुआ / मरुदेवी ने ___ चौदह स्वम देखे / इन्द्र महाराज ने स्वप्नफल कहा / चैत्रवदि अष्टमी को ऋषभदेवजी का जन्म हुआ। छप्पन दिक्कुमारी और चौसठ इन्द्रने मिल के जन्ममहोत्सव करा / मरुदेवीने चौदह स्वम की आदि में वैल का स्वम देखा था, तथा पुत्र के दोनों साथलों में वैल का चिन्ह था, इस वास्ते पुत्र का नाम ऋषम रक्खा / बाल अवस्था में श्रीऋपभदेव को जब भूख लगती थी, तव अपने हाथ का अंगूठा मुख में ले के चूस वाल्यावस्था और लेते थे। उस अंगूठे में इन्द्रने अमृत संचार इन्वाकु कुल कर दिया था। जब ऋषभदेवजी बडे हुए तब देवता उनको कल्पवृक्षों के फैल लाकर देते थे, वे फल खा लेते थे। जब ऋषभदेवजी कुछ न्यून एक वर्ष के हुए, तब इन्द्र आया, हाथ में इक्षुदण्ड लाया / क्योंकि रीते हाथ से स्वामी के समीप न जाना चाहिये, इस वास्ते इक्षुदण्ड लाया। उस वक्त में श्रीऋषमदेवजी नामिकुलकर की गोदी में बैठे थे। तब श्री ऋषभदेव की दृष्टि इक्षुदंड ऊपर पड़ी। तब इंद्रने कहा कि हे भगवन् ! ' इक्षु अकु' अर्थात् इक्षु भक्षण करोगे! तब ऋषभदेवनी ने हाथ