________________ एकादश परिच्छेद 363 गये; तव युगलक लोगों ने अपने अपने वृक्षों का ममत्व कर लिया। पीछे जव दूसरे युगलों के रक्खे हुए वृक्षों से फल लेने लगे, तब ममत्ववाले युगल उन से क्लेश करने लगे। तव युगलक पुरुषों को ऐसा विचार आया कि, कोई ऐसा होवे, जो हमारे क्लेश का निवेडा करे। तब तिन युगलियों में से एक युगल को एक वन के श्वेत हाथीने देख कर प्रेम से अपने स्कंध पर चढ़ा लिया। जब वो युगल पुरुष एकला हाथी ऊपर चढ़ के फिरने लगा। तब और युगलों ने विचार किया कि यह युगल, हम से बड़ा है। क्योंकि यह हाथी ऊपर चढ़ा फिरता है, और हम तो पगों से चलते हैं, इस वास्ते इस को न्यायाधीश बनाओ, अर्थात् जो यह कहे, सो मानो। तब तिनों ने उसको न्यायाधीश बनाया / जिस कारण से हाथी ने युगल को अपने ऊपर चढ़ाया है, सो कारण, और इनों के पूर्वमव की कथा आवश्यक सूत्र तथा प्रथमानुयोग से जान लेनी। तब तिस विमलवाहन ने सर्व युगलियों को कल्पवृक्ष बांट के दे दिये। कितनेक युगलिये अपने कल्पवृक्षों से संतोष न करके औरों के कल्पवृक्षों से फल लेने लगे, तब उस वृक्ष के मालिक क्लेश करने लगे। पीछे तिस असंतोषी युगलियों को पकड़ के विमलवाहन के पास लाये। तब विमल. वाहनने उनको कहा कि 'हा' तुम ने यह क्या करा! तब से विमलवाहनने ऐसी दण्डनीति प्रवाई / तिस हाकार