________________ एकादश परिच्छेद 361 के कल्पवृक्षों से अपने खाने पीने पहनने सोने आदिक का सर्व व्यवहार कर लेते थे / एक लड़का एक लड़की दोनों का युगल जन्मते थे। जब यौवनवंत होते थे, तब दोनों बहिन और भाई, स्त्री भरतार का सम्बंध कर लेते थे। उनों के आगे ऐसे ही फिर युगल होते रहते थे, सो पूर्वोक्त सर्व व्यवहार करते थे। जैनमत के मापे से तीन गाऊ (कोस ) प्रमाण उनका शरीर ऊंचा था, और तीन पल्योपम प्रमाण आयु थी, तथा दो सौ छप्पन पृष्ठकरंड के हाड थे। धर्म करना, और जीवहिंसा, झूठ, चोरी प्रमुख पाप भी विशेष नही था। वृक्षों ही में सो रहते थे। जुगल-जोड़े भी गिनती में थोड़े थे, शेष-बाकी चौपाय, पक्षी, पंचेंद्रिय सर्व जाति के जीव थे, परन्तु वो भद्रक थे, क्षुद्रक नहीं थे। शालि प्रमुख सर्व अन्न तथा इक्षु प्रमुख चीजें सव जंगलों में स्वयमेव ही उत्पन्न हो जाते थे। परन्तु वो कुछ मनुष्यों के खाने में नहीं आते थे। क्योंकि मनुष्य तो केवल फल फूलों का ही आहार करते थे / वस की जगे वृक्षों के पत्ते वा छिलके ओढ़ते थे / इत्यादि प्रथम आरे का स्वरूप जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति प्रमुख शास्त्रों से जान लेना। दूसरा आरा, तीन कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण था / तिस में दो गाऊ (कोस ) देहमान, दो पस्योपम आयु, एक सौ अठाई पृष्ठकरंड के हाड थे, शेष व्यवहार प्रथम आरेवत् जानना।