________________ जैनतत्त्वादर्श एकादश परिच्छेद इस परिच्छेद में ऋषभादि से महावीर पर्यंत जैनमतादि शास्त्रों के अनुसार पूर्व वृत्तांत-इतिहास रूप लिखते हैं। ताकि इस ग्रन्थ के पढ़नेवाले यह तो जान जाएँ कि जैनी इस तरे मानते हैं। - वर्तमान समय में कितनेक भव्य जीवों की जिज्ञासा है कि, जैनमत कव से यहां प्रचलित हुआ। जैनमत संबंधी फिर कितनेक जीवों को ऐसी भ्रांति भी भ्रांतिया है कि, जैनमत बौद्धमत की शाखा है, और कितनेक कहते हैं कि, बौद्धमत जैनमत की शाखा है। क्योंकि यह दोनों मत किसी काल में एक थे, परन्तु आचार्यों के मतभेद होने से एक मत के जैन और बौद्ध यह दो भेद हो गये। तथा कोईएक कहते हैं कि संवत् छ सौ के लगभग जैनमत हुआ है / तथा कोई कहते हैं कि, विष्णु भगवान्ने दैत्यों को धर्मभ्रष्ट करने के वास्ते अर्हत का अवतार लिया / तथा कोई कहते हैं कि मच्छंदरनाथ के बेटों ने जैनमत चलाया है। इत्यादि अनेक विकल्प कहते हैं, परन्तु यह सब कुछ जैनमत के न जानने का परिणाम है। जैसे चर्मकार अर्थात् चमार कहते है कि, बानो और चामो दो बहिनें थी, तिन में बानों की औलाद अग्रवालादि सर्व बनिये हैं, और चामों की औलाद हम चमार