________________ दशम परिच्छेद 357 संयम का योग न होवे, सो संलेखना करके शत्रुजयादि तीर्थ सुस्थान में जा कर निर्दोष स्थंडिल में विधि से चार आहार त्यागरूप अनशन को आणंद, कामदेवादि श्रावकोवत् करे / तिस पीछे सर्वातिचार का परिहार चार शरणादि रूप आराधना करे। आराधना दस प्रकार से होती है, सो कहते हैं-१. सर्वातिचार आलोवे, 2. व्रत उच्चारण करे, आराधना 3. सर्व जीवों से क्षमावे, 4. अपनी आत्मा को अठारह पापस्थानक से व्युत्सर्जन करे, 5. चार गरणा लेवे, 6. गमनागमन दुष्कृत की गर्हणा करे, 7. जो किसी ने जिनमंदिरादि सुकृत करा होवे, तिसकी अनुमोदना करे, 8. शुभ भावना भावे, 9. अनशन करे अर्थात् चार आहार, तीन आहार का त्याग करे, 10. पंच नमस्कार का स्मरण करे। ऐसी आराधना करने से लेकर तिस भव से मुक्ति न होवे, तो भी सुदेव अथवा सुमनुष्य के आठ भव करके तो अवश्यमेव मोक्षरूप हो जावेगा। इस गृहस्थ का धर्म करने से निरंतर गृहस्थ लोग इस लोक, परलोक में सुख को प्राप्त होते हैं, अरु परंपरा से मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इति श्री नपागच्छीय मुनि श्रीवुद्धिविजय शिष्य मुनि आनंदविजय-आत्मारामविरचिते जैनतस्वादर्श दशमः परिच्छेदः संपूर्ण