________________
३४२
जैनतत्त्वादर्श न होवे, तो तृण की कुटी भी न्यायार्जित धन से बना कर उसमें मट्टी की प्रतिमा बना करके पूजे। न्यायोपार्जित धन से ही जिनमन्दिर बनाना चाहिये । जिसने जिनभवन नहीं कराया, जिनप्रतिमा नहीं बनवाई, जिनप्रतिमा की पूजा नहीं करी अरु साधुपना नहीं लिया, उस पुरुष ने अपना जन्म हार दिया है। जो पुरुष शक्ति के अभाव से एक फूल से सी पूजा करे, तो भी वो परमपुण्य उपार्जन करता है, तो फिर जिसने दृढ़, निविड, सुंदर शिला से श्रीजिनभवन मानरहित हो कर बनवाया है, तिसके पुण्य का तो क्या कहना है ? उसका तो जन्म ही सफल है। ___ अब जिनमन्दिर बनाने की विधि है, सो लिखते हैंभूमि अरु काष्ठादि शुद्ध होवे । मजूरों से छल न करे, सूत्रधार, कारीगरों को सन्मान देवे। तथा पूर्व में जो घर बनाने की विधि कही, वो सर्व इहां विशेष करके जाननी । काष्ठादि जो लावे, सो देवाधिष्ठित वनादि से सूखा लावे, परन्तु अविधि से न लावे । तथा आप ईंट पकावे, तो अच्छा नहीं। नौकरों को, काम करनेवालों को ठहराये से भी कछुक महीना अधिक देवे। क्योंकि वे लोक तुष्टमान होकर अच्छा और पक्का काम करेंगे। अरु मन्दिरादि कराने में शुभ परिणाम के वास्ते गुरु संघ समक्ष ऐसे कहे कि, जो इहां अविधि से पर का धन मेरे पास आया होवे, तिस का पुण्य तिस को होवे । इस तरे जिनमन्दिर बनावे । परन्तु भूमि खोदनी,