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________________ दशम परिच्छेद ३४१ है । अरु स्त्री मिलने का फल यह है कि अच्छा पुत्र उत्पन्न होवे, चित्त की वृत्ति अनुपहत रहे, शुद्धाचार, देवगुरु, अतिथि, बांधवादि का सत्कार होवे । तथा विवाह में जो धन खरचे, सो अपने कुल वैभव की अपेक्षा लोक में जैसे अच्छा लगे, उतना खरच करे, परन्तु अधिक अधिक खरचने की चाल न बढ़ावे । क्योंकि अधिकाधिक खरच तो धर्म पुण्य की जगे ही करना ठीक है । विवाहादि के अनुसार स्नात्रमहोत्सव, बड़ी पूजा, । आदर सहित करे । रसवती ढौकन अरु चतुर्विधसंघ का सत्कार करे । क्योंकि विवाहादि जो हैं, सो सब संसार के कारण हैं, इस में से जितना धर्म में लग जावे, सो सफल है । अथ चौथा मित्र द्वार कहते हैं । उसको मित्र बनावे, उमको गुमास्ता रक्खे, जो उसको सहायक होवे । अर्थात् उत्तम प्रकृतिबाला, माधर्मी, धैर्यवन्त, गम्भीर, चतुर, बुद्धिमानू, प्रतीतकारी, सत्यवादी इत्यादि शुभगुण युक्त जो होवे, उसको मित्र बनावे | पाचमा द्वार भगवान् का मन्दिर बनावे | बड़ा ऊंचा, तोरण शिखर मंडपादि मंडित, भरतचक्रवजिनमन्दिर का यदिवत् बनावे | सुवर्ण मणि रत्नमय तथा विशिष्ट पाषाणमय, अथवा विशिष्ट काष्ठ और ईंटमय मन्दिर बनावे | जेकर शक्ति निर्माण
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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