SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम परिच्छेद ३३९ श्रीमतीवत् । तथा सामुद्रिक शालोक्त शरीर के लक्षण अरु जन्मपत्रिका देख के वर कन्या की परीक्षा करके विवाह करे । तदुकं--- कुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च वित्तं च वपुर्वयश्च । वरे गुणाः सप्त विलोकनीया. __ स्ततः परं भाग्यवशा हि कन्या ।। तथा जो मूर्ख होवे, निर्धन होने, दूर होवे, सूरमा होवे, मोक्षामिलापी, वैरागवन्त होवे, वय में कन्या से त्रिगुणा अधिक होवे, इनको कन्या न देनी। तथा अति धनवान्, अति शीतल, अति क्रोधी, विकलांग, अरु रोगी, इनको भी कन्या न देनी । तथा जो कुल जाति से हीन होवे, माता पिता रहित होवे, स्त्री पुत्र सहित होवे, इनको भी कन्या न देनी। तथा जिसका बहुतों से वैर होवे, जो नित्य कमा के खावे, अरु जो आलसी होवे, इनको भी कन्या न देनी । तथा सगोत्री को, जुआरी को, कुव्यसनी को, विदेशी को भी कन्या न देनी । जो स्त्री कपट रहित भार के साथ वर्ते, देवर के साथ भी कपट रहित वर्ते, सामु की भक्ता होवे, स्वजन की वत्सला होवे, भाइयों में स्नेहवाली होवे, कमल की तरे विकसित वदनवाली होवे, सो कुलवधू सुलक्षणा है।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy