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________________ ३३१ दशम परिच्छेद उसी भव में मोक्ष कैसे जाते ! इस वास्ते वर्ष वर्ष प्रति चौमासे चौमासे आलोचना लेवे। अथ जन्मकृत्य अठारह द्वारों करके लिखते हैं । तिस में प्रथम उचित द्वार है । सो पहिले तो उचित-योग्य वसने का स्थान करे। जहां रहने से धर्म, अर्थ अरु काम, तीनों की सिद्धि होवे, तहां श्रावक को वास करना चाहिये। निवासस्थान तथा क्योंकि और जगे वसने से दोनों भव बिगड़ गृहनिर्माण जाते हैं । मिल्लपल्ली में, चोरों के गाम में, पर्वत के किनारे, हिंसक लोगों में, दुष्ट लोगों में, धर्मी लोगों के निदकों में, इत्यादि स्थान में, वास न करे। परन्तु जहां जिनचैत्य होवे, जहां मुनि आते होवे, जहां श्रावक वसते होवें, जहां बुद्धिमान् लोग स्वभाव से ही शीलवान् होवें, जहां प्रभा धर्मशील होवे, बहुत जल, इन्धन होवे, तहां वास करे । जैसा अजमेर के पास हर्षपुर नगर था, ऐसे नगर में रहने से धनवन्त, गुणवन्त अरु धर्मवन्त की संगति से विनय, विचार, आचार, उदाः रता, गंभीरता, धैर्य, प्रतिष्ठा आदि गुणों की प्राप्ति होती है, धर्मकृत्य में कुशलता प्रगट होती है। इस वास्ते बूरे गामों में चाहे धनप्राप्ति होवे, तो भी वास न करे । उक्तं च यदि वांछसि मूर्खत्वं, ग्रामे वस दिनत्रयं । अपूर्चस्यागमो नास्ति, पूर्वाधीतं च नश्यति ॥
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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