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जैनतत्त्वादर्श पढ़े, सुने, चिंते । तथा शुक्ल पंचमी को ज्ञान की पूजा करे । तथा दर्शनाचार में काना काढ़े, अर्थात् संमार्जना करे । देहरे में लीपे, गुंहली करे, मांडली करे, चैत्य जिनप्रतिमा की पूजा करे, देववंदना करे, जिनबिंबों को निर्मल करे। तथा चारित्र में जूओं की यना करे, वनस्पति में कीड़े पडे खार न देवे, इंधन में, जल में, अग्नि में, धान्य में, जीव हो, तिन की रक्षा करे। किसीको कलंक न देवे, कठिन वचन न बोले, रूखा वचन न बोले । तथा देव की अरु गुरु की सोगंद न खावे, किसी की चुगली न करे, किसी के अवर्णवाद न बोले, माता पिता से छाना काम न करे । निधान तथा पड़ा हुआ धन देख के जैसे शरीर और धर्म न बिगड़े, तैसे करे । दिन में ब्रह्मचर्य पाले, रात्रि को स्वदारा से संतोष करे। तथा धनधान्यादि नव प्रकार के परिग्रह का इच्छा परिमाण व्रत करे। दिशावकाशिक व्रत करे। तथा स्नान का, उवटने का, विलेपन का, आमरण का, फूल का, तंवोल का, चरास का, अगर का, केसर का, कस्तूरी का, इतनी मोगने की वस्तुओं का परिमाण करे। तथा मंजीठ, लाख, कुसुंभा, नील, इन से रंगे वस्त्रों का परिमाण करे। तथा रत्न, वज्र, नीलमणि, सुवर्ण, रूपा, मोती प्रमुख का परिमाण करे । तथा जवीर, जंवरूद, जंबू, राजादन, नारंगी, सन्तरा, बिजोरा, काकड़ी, अखरोट, बदाम, कोठफल, टीवरू, बिल, खजूर, द्राक्ष, दाडिम, उत्तिन का फल, नालियर, अंबली, बोर,