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दशम परिच्छेद
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की रक्षा के वास्ते पहिले ही चूना आदि खार लगा देवे | मैल दूर करे, धूप में न गेरे, शीतल स्थान में रख देवे । तथा दिन में दो तीन वार जल छाने । स्नेह, गुड़, छाछ प्रमुख के बासन का सुख यत्न से ढक के रक्खे । तथा ओसामण का अरु स्नान का पानी, जहां जीव न होवें, तहां पृथक् पृथक् भूमि में थोड़ा थोड़ा गेरे । तथा चूल्हा अह दीपक प्रमुख उघाड़ा न छोड़े । तथा खंडना, पीसना, रांधना, वत्र भाजन धोने, इत्यादि कामों को देख के यत्न से करे । तथा जिनमन्दिर अरु धर्मशाला को समरा के रक्खे । तथा यथाशक्ति उपधान तप प्रतिमादि वहे, तथा कषाय अरु इंद्रिय को जीते । तथा योगशुद्धि तप, वीस स्थानक तप अमृत अष्टमी तप, एकादशांग तप, चौदह पूर्वं तप, नमस्कार तप, चौवीस तीर्थंकर के कल्याणक तप, अक्षयनिधि तप, दमयन्ती तप, भद्रमहाभद्रादि तप, संसारतारण भट्ठाई तप, पक्ष मासादि विशेष तप करे । तथा रात्रि को चतुविघ आहार, त्रिविध आहार का त्याग करे । पर्वदिन में विकृति त्यागे, पर्वदिन में पौषधोपवासादि करे । तथा निरन्तर पारने में अतिथिसंविभाग करे । चातुर्मासिक अभिग्रह करना पूर्वाचार्यों ने इस तरे से लिखा है । ज्ञानाचार में, दर्शनाचार में, चारित्राचार में तप आचार में, तथा वीर्याचार में द्रव्यादि अनेक प्रकार का अभिग्रह करे । सो इस रीति से है । ज्ञानाचार में शक्ति के अनुसार सूत्र
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