________________
जैनतत्त्वादर्श अरु निधनों को इस से विपरीत जान लेना । तथा चित्त एकाग्र करना यह तो सर्व ही को दुष्कर है। इन में दुनिर्वाह नियम न हो सके तो सुनिर्वाह नियम अंगीकार करे । तथा चौमासे में ग्रामांतर न जावे, जेकर निर्वाह न होवे तो जिस गाम में अवश्य जाना है, तिसको वर्ज के और जगे न जावे । सर्व सचित्त का त्याग करे। निर्वाह न होवे, तो परिमाण करे। तथा दो तीन वार जिनराज की अष्टप्रकारी पूजा करे, संपूर्ण देववंदन सर्व जिनमंदिरों में जिनबिंबों की पूजा बंदना करनी, स्नानपूजा, महामहोत्सव, प्रभावनादि करे । गुरु को बृहत् वंदना तथा और साधुओं को प्रत्येक वंदना करे । चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करे। अपूर्व ज्ञान पढे, गुरु की वैयावृत्य करे, ब्रह्मचर्य पाले, अचित्त पानी पीवे, सचित्त का त्याग करे। बासी, बिदल, रोटी, पूरी, पापड़ बड़ी, सूखा साग, पत्ररूप हरा साग, खारक, खजूर, द्राक्ष, खांड, शुंठ्यादि, यह सर्व नीली फूलण, कुंथुआदि लट कीड़े पड़ने से खाने योग्य नहीं रहते हैं। इस वास्ते इन का त्याग करे । कदाचित् औषधादि विशेष कार्य में लेनी पड़े तो सम्यग् रीति से शोध के लेवे । तथा खाट, स्नान, शिरगुंदाना, दातन, पगरखा, इन का त्याग करे । तथा भूषण, वस्त्र रंगने का निषेष करे। तथा घर, हाट, भीत, स्तंभ, खाट, पाट, पट्टक, पट्टिका, छींका अरु घृत, तैलादिक का वासन, इंधन, घान्यादि सर्व वस्तु में नीली फूली हो जाती है । अतः इस