________________
शाला
दशम परिच्छेद अरु दयावान् हो जाता है। कृपण भी धन खरच देते हैं, कुशील मी सुशील हो जाते हैं । वो जयवंत रहो कि, जिस ने संवत्सरी, चातुर्मासी आदि अच्छे पर्व कथन करे हैं। क्योंकि जो अनार्यों के चलाये पर्व है, तिन में आग जलाना, जीव मारने, रोना, पीटना, धूल उडानी, वृक्षों के पत्रादि तोड़ने इत्यादि नानाप्रकार के पाप होते है, अरु जो पर्व, परमेश्वर अरिहंतने कहे है, उनमें तो केवल धर्मकृत्य ही करना कहा है। इस वास्ते पर्वदिन में पौपधादि करे। पौषध के मेद अरु विधि यह सव श्राद्धविधि आदि शास्त्रों से जान लेना। अथ चौमासिककृत्य की विधि लिखते हैं। चौमासे में
विशेष करके नियम व्रत और परिग्रह का चातुर्मायिक मृत्य परिमाण करना चाहिये । वर्षा-चौमासे में बहुत
___ जीव उत्पन्न हो जाते हैं, इस वास्ते विशेष नियमादि करना चाहिये। बर्सात में गाड़ा चलाना तथा हल फेरना न करे । तथा राजादन, अर्थात् खिरनी, आंब आदि में कीडे पड़ जाते है, सो न खाने चाहिये । देशों का विशेष अपनी बुद्धि से समझ लेना। तथा नियम भी दो तरे के हैं, एक सुनिर्वाह, दूसरा दुर्निर्वाह । तिन में धनवंतों को व्यापार का अरु अविरतियों को सचित्त का त्याग, रस का त्याग, तथा शाक का त्याग करना, अरु सामायिकादि अंगीकार करना, यह दुर्निर्वाहहे। अरु पूजा, दान, महोत्सवादि सुनिर्वाह है।
बीमासिक करके निकाहये । वर्षा वास्ते विशेष