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________________ ३१४ जैन तत्त्वादर्श उमास्वातिवाचकप्रघोषश्चैवं श्रूयते - क्षये पूर्वा तिथिः कार्या, वृद्धौ कार्या तथोत्तरा । श्रीवरज्ञान निर्वाण, कार्य लोकानुगैरिह || I तथा श्री अर्हतों के - जन्मादि पंचकल्याणक के दिन भी पर्व हैं । जब दो, तीन, कल्याणक होवें, तब तो विशेष करके पर्व मानना चाहिये । शास्त्रों में सुनते हैं कि, श्रीकृष्णवासुदेव ने सर्व पर्व के आराधन में अपने को असमर्थ जान कर श्रीनेमिनाथ अरिहंत को पूछा कि, उत्कृष्ट पर्व कौन सा है ! तब भगवान् ने कहा कि, हे कृष्ण वासुदेव ! मगसिर शुक्ला एकादशी सर्वोत्तम पर्व हैं क्योंकि इस दिन श्रीजिनेंद्रों के पांच कल्याणक भये हैं, सर्व क्षेत्रों के डेढ़ सौ कल्याणक हुये हैं । तव श्री कृष्ण वासुदेव ने मौन पौषघोपवास करके तिस दिन को माना । तब से ही " यथा राजा तथा प्रजा इस रीति से सब लोक एकादशी मानने लगे, सो आज तक प्रसिद्ध है । 19 तथा दूज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, इन तिथियों में प्रायः जीवों का परभव का आयु बंधता है, इस वास्ते इन तिथियों में विशेष धर्म करनी करे । तथा पर्व की महिमा के प्रभाव से अधर्मी अरु निर्दयी भी धर्मी * उमास्वाति वाचक का कथन इस प्रकार सुनने में आता है ।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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