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________________ दशम परिच्छेद ३१३ होवे सो तिथि जैन मत में माननी प्रमाण है। लोक में भी सूर्योदय के अनुसार दिन का व्यवहार होने से उदय तिथि माननी प्रमाण है । तथा च निशीथभाष्ये चाउम्मासिअ बरिसे पक्खिअपंचट्ठमीसु नायन्या । ताओ तिहिओ जासिं, उदेह सूरो न अन्नाओ ॥१॥ पूआ पञ्चरखाणं, पडिकमणं तहय नियमगहणं च । जीए उदेह सूरो, तीइ तिहीए उ कायव्वं ॥ २ ॥ उदयम्मि जा तिही सा पमाणमिअरी कीरमाणीए । आणाभंगणवत्थामिच्छत्त विराहणं पावे ॥ ३ ॥ अर्थ:-चौमासी, संवत्सरी, पक्खी, पंचमी, अष्टमी, ये तिथियें सूर्योदय में हो, तब प्रमाण है। नान्यथा । पूजा, पडिकमणा, प्रत्याख्यान, तैसे ही नियम ग्रहण करना, सो जिस तिथि में सूर्योदय होवे, तिस में करना चाहिये । क्योंकि जो तिथि सूर्योदय में होवे, सो प्रमाण है। तथा उदय तिथि के बिना जो कोई और तिथि करे, माने, सो आज्ञा का विराधक, अनवस्थाकारक, मिथ्यादृष्टि है। पाराशरस्मृत्यादि में भी लिखा है आदित्योदयवेलायां, या स्तोकापि तिथिर्भवेत् । सा संपूर्णेति मंतव्या, प्रभुता नोदयं विना ।।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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