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जैनतत्वादर्श पूर्णमासी, एवं षट् पर्व हुये अरु वर्ष में छ अट्ठाई पर्व है। चौमासी पर्वादि पों में जेकर सर्वथा आरम्म न त्याग सके, तो स्वल्प स्वल्पतर आरंभ करे। तथा पर्व के दिन सर्व सचित्ताहार वर्षे । श्रावक को तो नित्य ही सचित्ताहार वर्जना चाहिये। जेकर शक्ति न होवे, तदा पर्व के दिन तो अवश्य वर्जे । तथा ऐसे पर्व के दिनों में स्नान, शिर दिखाना, गूंथन कराना, वस्त्र घोना, रंगना, गाडा, हल आदि चलाना, धान्य का मूढक बांधना, कोरहू, अरहट चलाना, दलना, छड़ना, पीसना, पत्र, पुष्प, फल तोड़ना, सचित्त खड़ी हरमजी का मर्दन करना, धान्य काढना, लीपना, माटी खोदनी तथा घर बनाना, इत्यादि सर्व आरम्भ यथाशक्ति से त्यागना चाहिये । तथा सर्व सचित्ताहार का त्याग न कर सके, तो नाम लेके कितनीक वस्तु खाने की छूट रक्खे, उपरांत त्याग देवे । तथा छ ही अट्ठाइयों में जिनवर की पूजा करनी, तप करना और ब्रह्मचर्य पालना। इन छ अट्ठाइयों में चैत्र तथा आसोज की दो अट्ठाई हैं, सो शाश्वती हैं, इन दोनों में वैमानिक देवता भी नन्दीश्वरादि में यात्रोत्सव करते हैं। तथा तीन चौमासे की तीन अट्ठाई अरु चौथी पर्युषण की तथा दो चैत्र अरु आसोज की, यह सब मिल कर छ अट्ठाई हैं। । • तथा जो तिथि प्रभात समय-प्रत्याख्यान की वेला में
और ब्रह्मालाई हैं, सा
यात्रोत्सव