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दशम परिच्छे
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शरीर होके उत्तम पुरुषों के मार्ग में चलूंगा ! इत्यादिक भावना से काम के कटक को जीते।
पर्व के
अथ श्रावक का पर्वकृत्य लिखते हैं । पर्व जो अष्टमी, चतुर्दशी आदि दिवस, तिस में धर्म की पुष्टि करे तिसका नाम पोषध है । सो पोपत्र भले बतवाले श्रावक को दिन में अवश्य करना चाहिये, जेकर पर्व के दिन शरीर में साता न होवे, पौपत्र न कर सके, तो दो वार प्रतिक्रमण करे । तथा बहुत बार सामायिक अरु दिशावकाशिक व्रत अंगीकार करे । तथा पर्वदिनों में ब्रह्मचर्य पाले, आरम्भ वर्जे, विशेष तप करे, चैत्य परिपाटी करे, सर्व साधुओं को नमस्कार करे, तथा सुपात्रदान, देवपूजा अरु गुरुभक्ति, यह सर्व और दिनों से विशेष करे । धर्मकरनी तो सर्व दिनों में करनी अच्छी है, जेकर सदा न करी जावे, तो पर्व के दिन तो अवश्यमेव करनी चाहिये । सो पर्व ये हैं - अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णमासी, अमावास्या, यह एक मास में छ पर्व अरु पक्ष में तीन पर्व, तथा दूज, पञ्चमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दगी यह पांच तिथि, तीर्थकरोने कही हैं । उसमें दूज के दिन दो प्रकार का धर्म आराधन करना, पञ्चमी के दिन ज्ञान को आराधना, अष्टमी को अष्टकर्म का नाश करना एकादशी में ग्यारह अंग को आराधना, चतुर्दशी में चौदह पूर्व को आराधना, यह पांच तथा पूर्वोक्त अमावास्या अरु
पवल