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दशम परिच्छेद
३०९ से अशुचि झरती है। जिस द्वार को सूचों, उसीमें से महा सड़े हुये कुत्ते के कलेवर समान दुर्गन्ध आती है। तो फिर कामीजन क्योंकर उस सी के शरीर में रागांध होते हैं ! इत्यादि सी के शरीर की अशुचिता को विचारे। धन्य है, वो पुरुष जम्बुकुमार जिस ने नवपरिणीत आठ पद्मिनी स्त्री, अरु निनानवे क्रोड़ सोनये छिनक में त्याग दिये । तिस का माहात्म्य विचारे । तथा श्रीस्थूलिभद्द्र अरु सुदर्शन सेठ के शील का माहास्य विचारे ।
कपाय जीतने का उपाय इस तरे करे-क्रोध को क्षमा करके जीते, मान को नरमाई से जीते, माया को सरलताई से जीते, लोभ को सन्तोष से जीते, राग को वैराग्य से जीते, द्वेप को मित्रता से जीते, मोह को विवेक से जीते, काम को स्त्री के शरीर की अशुचि भावना से जीने, मत्सर को पर की संपदा देख के पीड़ा न करने से जीते, विषय को संयम से जीते, अशुभ मन, वचन अरु काया इन तीनों को तीन गुप्ति से जीते, आलस को उद्यम से जीते, अविरतिपने को विरतिपने से जीते । इस प्रकार यह सब सुख से जीते जाते हैं। आगे भी बहुत महात्माओं ने इनको इसी तरे जीता है।
भवस्थिति महादुःखरूप है, क्योंकि चारों गति में जीव नाना प्रकार के दुःख पा रहे हैं। तिन में नरकगति में तो