________________
दशम परिच्छेद
३०७ नींद लेनी, बहुत काल लग सोये रहना अच्छा नहीं । तथा रात को सोवे तदा दिशावकाशिकवत उच्चार के सोवे । तथा चार सरणा लेवे, सर्व जीवराशि से खामणा करे, अठारह पापस्थान का व्युत्सर्जन करे, दुष्कृत की निंदा करे, सुकृत का अनुमोदन करे, तथा
जह मे हुज पमाओ, इमस्स देहस्स इमाइ रयणीये । आहारमुबाहिदेहं, सवं तिविहेण वोसिरियं ॥
नमस्कारपूर्वक इस गाथा को तीन वार पढ़े, साकार अनगन करे, पंच नमस्कार स्मरण सोने के अवसर में करे । सी से दूर अलग शच्या मे सोवे । जेकर निकट सोवे, तब एक तो विकार अधिक जागता है, तथा दूसरा जिस वासना युक्त पुरुष सोवे, सो जितना चिर जागे नहीं, उतना चिर वही वासना उस पुरुष को रहती है। इस वास्ते स्त्री से अलग दूसरी शय्या में सोवे । तथा मरणावसर में गफलत हो जावे, तो भी तिस के जो सचित अवस्था में वासना थी वही वासना है, ऐसे जानना । इस वास्ते सर्वथा उपशांतमोह हो करके, धर्म वैराग्यादि भावना से वासित हो करके निद्रा करे, तो खोटा स्वप्न न होवे । जिस रीति से अच्छा धर्ममय स्वप्न देखे, उसी रीति से सोवे । जेकर कदाचित् उसकी आयु समाप्त भी हो जावे, तो भी वो अच्छी गति में जावे।