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जैनतत्त्वाद चार जात की लकडी लगे, तो शुभ है, परन्तु पांचादि काष्ठ लगे, तो अशुभ है। तथा पूजनीक वस्तु के ऊपर न सोवे, तथा पानी से पग भीजे न सोवे, तथा उत्तर दिशा अरु पश्चिम दिशा की तर्फ शिर करके न सोवे, बांस की तरे न सोवे, पगों के ठिकाने न सोवे, हाथी के दांत की तरें न सोवे । देवता के मन्दिर के मूलगंभारे में, सर्प की बंबी पर, वृक्ष के हेठ, तथा श्मशान में नहीं सोवे । किसी के साथ लड़ाई हुई होवे, तदा मिटा के सोवे । सोते वक्त पानी पास रक्खे, तथा दरवाजा जड़ के, इष्टदेव को नमस्कार करके बड़ी शय्या में अच्छी तरें ओढ़ने के वस्त्र समार के, सर्वाहार को त्याग के, वामा पासा नीचे करके सोवे ।
दिन को सोवे नहीं, परन्तु क्रोध, शोक, अरु मद्य के मिटाने के वास्ते तथा स्त्री कर्म, अरु भार के थके को मिटाने के वास्ते तथा रस्ते के खेद को मिटाने के वास्ते तथा अतिसार, श्वास, हिचकी प्रमुख रोग दूर करने के वास्ते सोवे । तथा जो बाल होवे, वृद्ध होवे, बलक्षीण होवे, सो सोवे । तथा तृषा, शूल, और क्षत की वेदना करके विह्वल होवे, सो सोवे । तथा जिसको अजीर्ण हुवा होवे, वाय हुवा होवे, जिसको खुशकी हुई होवे, तथा जिसको रात्रि में निद्रा थोडी आती होवे, वो दिन को भी सो जावे। तथा ज्येष्ठ अरु आषाढ़ महीने में दिन में भी सोना अच्छा है। और महीनों में सोवे, तो कफ अरु पित करता है। तथा बहुत