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दशम परिच्छेद
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क्योंकि लोक में यह व्यवहार है कि, जो चोर को खानेपीने को देवे, सो भी चोर गिना जाता है; ऐसे ही धर्म में भी जान लेना । इस वास्ते श्रावक को द्रव्य तथा भाव से अपने कुटुम्ब को शिक्षा देनी चाहिये । उसमें द्रव्य से पुत्र, कलन, बेटी प्रमुख को यथायोग्य वस्सादि देवे, अरु भाव से तिनको धर्म का उपदेश करे । तथा दुःखी सुखी की चिंता करे । अन्यत्राप्युक्तं --
राज्ञि राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहिते । भर्त्तरि स्त्रीकृतं पापं, शिष्यपापं गुरावपि ॥
धर्म देशना दिये पीछे, रात्रि का प्रथम प्रहर वीते पीछे, शरीर को हितकारी शय्या में विधि से निद्रा अल्पमात्र करे । गृहम्थ बाहुल्य करके मैथुन से वर्जित होवे । जेकर गृहस्थ जावजीव तक ब्रम्मत पालने में समर्थ न होवे, तदा पर्वतिथि के दिन तो उसको अवश्य ब्रह्मचर्य व्रत पालना चाहिये |
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नींद लेने की विधि नीतिशास के अनुसार यह है :जिस खाट में जीव पड़े होवें, जो खाट छोटी होवे, भांगी हुई होवे, मैली होवे, दूसरे पाये संयुक्त होवे, तथा अग्नि के बले काष्ठ की खाट होवे, सो त्यागे । खाट में तथा आसन में
निद्राविधि