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जैनतत्वादर्श दशम परिच्छेद
इस परिच्छेद में श्रावकों का एक रात्रिकृत्य, दूसरा पर्व - कृत्य, तीसरा चौमासिकृत्य, चौथा संवत्सरीकृत्य, अरु पांचमा जन्मकृत्य, यह पांच कृत्य अनुक्रम से लिखेंगे । तिस में प्रथम रात्रिकृत्य लिखते हैं ।
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साधु के पास तथा पौषधशालादि में यत्न से प्रमार्जनापूर्वक सामायिक करके प्रतिक्रमण करे । पीछे साधुओं की पगचम्पी करे । यद्यपि साधुने श्रावक के पासों उत्सर्गमार्ग में विश्रामणादि नहीं करावनी, तो भी श्रावक यदि विश्रामणा करने का भाव करे, तो महाफल है । पीछे श्राद्ध दिनकृत्य, श्रावकविधि, उपदेशमाला अरु कर्मग्रन्थादि शास्त्रों का स्वाध्याय करे । पीछे सामायिक पार के घर में जावे ।
रात्रिकृत्य
पीछे सम्यक्त्व मूल बारह व्रत में, सर्वशक्ति से यत्नकरणादिरूप तथा सर्वथा अर्हत् चैत्य, अरु साधर्मिक वर्जित वासस्थान में अनिवासरूप तथा पूजा, प्रत्याख्यानादि अभिग्रहरूप, यथाशक्ति सप्त क्षेत्र में घन खरचनरूप, ऐसा यथायोग्य सकल परिवार को धर्मोपदेश कथन करे । जेकर श्रावक अपने परिवार को धर्म न कहे, तब उस परिवार को धर्म की प्राप्ति न होवेगी । तो इस लोक परलोक में पापकर्म करेंगे, सो सर्व उस श्रावक को लगेंगे ।
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