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नवम परिच्छेद जेकर एक मुक्त करने का सामर्थ्य न होवे, तदा दिन का अष्टम भाग अर्थात् चार घड़ी दिन जव रहे, तव भोजन कर लेवे, अर्थात् दो घड़ी दिन रहने से पहिले ही भोजन कर लेवे। पीछे यथाशक्ति चार आहार, तीन आहार, दो आहार का त्यागरूप दिवसचरिम सूर्य उगते ताई करे, सो मुख्य वृत्ति से तो दिन होते ही करना चाहिये, परन्तु अपवाद में रात को भी करे।
इति श्री तपागच्छीय मुनि श्रीवुद्धिविजय शिष्य मुनि आनंदविजय-आत्मारामविरचिते जैनतत्त्वादर्श
नवमः परिच्छेदः संपूर्णः