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________________ जैनतस्वादर्श ૨ लंघन करे । तथा देव, गुरु के वन्दनादि के अयोग से, तथा तीर्थ अरु गुरु को नमस्कार करने जाते वक्त, तथा विशेष धर्मांचीकार करते, बड़ा पुण्य कार्य प्रारम्भ करते, अरु अष्टमी, चतुर्दशी आदि विशेष पर्व के दिन भोजन न करना चाहिये । रूप का जो करना है, तो इस लोक अरु परलोक में बहुत चुपकारी है । - तथा भोजन करे पीछे नमस्कार स्मरण करके उठे, चैत्यवंदना करके देव, गुरु को यथायोग्य वन्दना करे । तथा भोजन के पीछे गंठिसहित दिवसचरिम प्रत्याख्यान विधि से करे। पीछे गीतार्थ साधु, गीतार्थ श्रावक, तथा सिद्धपुत्रादिकों के समीप स्वाध्याय - पठन पाठन यथायोग्य करे | योगशास्त्र ने लिखा है कि, जो गुरुमुख से पढ़ा होवे, सो औरों को पढ़ावे, स्वाध्याय करे। पीछे संध्या में जिनपूजा करे पीछे पडिकमणा करे । पीछे स्वाध्याय करे। पीछे वैयावृत्त्य अर्थात् सुनि की पगचम्पी करे । घर जा कर सकल परिवार को जोड़ के धर्म का स्वरूप कथन करे । उत्सर्ग मार्ग में तो श्रावक को एक बार ही भोजन करना चाहिये । यदभाणि - उस्सग्गेण तु सड्डो य, सचिताहारवजओ । इक्काaणगभोई अ, बंभयारी तहेब य ॥
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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