________________
जैनतत्वादर्श भी कुछ सिद्धि नहीं होगी। तब तो इस दृष्टान्त से भगवान् का नाम भी न लेना चाहिये ।
प्रश्नः-प्रतिमा को कारीगर बनाता है, तव तो उस कारीगर को भी पूजना चाहिये !
उत्तरः-वेदादि शास्त्रों को भी लिखारी लिखते हैं, तब तो उन को भी पूजना चाहिये ? तथा साधु के माता पिता को भी साधु से अधिक पूजना चाहिये।
प्रश्नः-स्थापना को कोई भी बुद्धिमान् इस काल में नहीं मानता है।
उत्तर:-बुद्धिमान् तो सर्व मानते हैं, परन्तु मूर्ख नहीं मानते।
प्रश्नः-कौन से बुद्धिमान स्थापना मानते हैं ! तिनों का नाम लेना चाहिये।
उत्तरः-प्रथम तो सांसारिक विद्या वाले सर्व बुद्धिमान् , सूगोल, खगोल, द्वीप अर्थात् युरोप खंड, विलायत प्रमुख का सर्व चित्र स्थापना रूप मानते हैं, और बनाते हैं। तथा जो ककार आदि अक्षर हैं, वे सर्व पुरुष-ईश्वर के शब्द की स्थापना करते हैं। तथा जैनियों के मत में जो एक सौ आठ मणके माला में रखते हैं, अधिक न्यून नहीं रखते । इस का - हेतु यह है, कि जैन बारह गुण तो अरिहंत पद के मानते हैं,
अरु आठ गुण सिद्ध पद के, छत्तीस गुण आचार्य पद के, पच्चीस गुण उपाध्याय पद के, तथा सचाईस गुण मुनि-साधु