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जैन तत्त्वादर्श
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हो जाता है । तथा अति खारा, अति खट्टा, अति उष्ण, अति शीतल, अति शाक, अति मीठा, ये सर्व न खावे । मुख के स्वाद मात्र खावे | क्योंकि अति उष्ण खावे, तो रस मारा नता है, अति खट्टा खावे, तो इन्द्रियों की शक्ति कम हो नाती है । अति लवण खावे, तो नेत्र बिगड़ जाते हैं । अति स्निग्ध खावे, तो नासिका विषय रहित हो जाती है । तथा तीक्ष्ण द्रव्य अरु कौड़ा द्रव्य खावे, तो कफ दूर हो जाता है, तथा कषायला अरु मीठा खावे, तो पित्त नष्ट हो जाता है । स्निग्ध घृतादिक खाने से वायु दूर हो जाता है। बाकी शेष रोग जो हैं, सो न खाने से दूर हो जाते हैं ।
जो पुरुष शाक न खावे, अरु घृत से रोटी खावे, तथा जो दूध से चावल खावे, तथा बहुत पानी न पीत्रे, अजीर्ण होवे, तदा खावे नहीं, सो पुरुष रोगों को जीत लेता है । भोजन करते वक्त पहिले मीठा अरु स्निग्ध भोजन करे, बीच में तीक्ष्ण भोजन करे, पीछे कौडी वस्तु खावे । उक्तं च
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सुस्निग्धमधुरैः पूर्वमश्रीयादन्वितं रसैः । द्रव्याम्ललवणैर्मध्ये पर्यंते कटुतिक्तकैः ॥
तथा जो पहिले द्रव्य अर्थात् नरम वस्तु खावे, मध्य में कडुआ रस खावे, अंत में फिर नरम रस खावे, सो बलवंत अरु नीरोगी रहे । तथा पानी को भोजन से पहिले पीवे, तो मंदाग्नि का जनक है, तथा भोजन के बीच में पीवे,