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________________ नवम परिच्छेद १९९ खावे, धोती आदिक एक वस पहिर के न खावे । भीने वस्त्र पहिर के न खावे । भीजे वस से मस्तक लपेट के न खावे ! यदा अपविन होवे तदा न खावे । अति गृद्ध रसलंपट हो कर न खावे । तथा जूते सहित, व्यग्रचित्त, केवल भूमि ऊपर बैठ के अरु मंजे पर बैठ के न खावे । विदिशा की तर्फ तथा दक्षिण की तर्फ मुख करके न खावे । पतले आसन पर बैठ के भोजन न करे, तथा आसन ऊपर पग रख के भोजन र करे, चण्डाल के देखते न खावे। जो धर्म से पतित होवे, उसके देखते न खावे । तथा फूटे पात्र में अरु मलिन पात्र में न खावे। जो शाकादिक वस्तु विष्टा से उत्पन्न होने, सो न खावे । वालहत्यादि जिस ने करी होवे, उसने तथा रजस्वला स्त्री ने जो वस्तु स्पर्शी होवे, तथा जो वस्तु गार, श्वान, पंखी ने सूंधी होवे, तथा जो वस्तु अजानी हो; तथा जो वस्तु फिर से उष्ण करी होवे; सो न खाये । तथा बचबचाट शन्द करके न खावे । तथा मुख फाटे तो बुरा लगे ऐसे मुख करके न खावे । तथा भोजन के अवसर में दूसरों को बुला के प्रीति उपजावे। अपने देव गुरु का नाम स्मरण करके समासन ऊपर बैठ के खावे । जो अन्न अपनी माता, बहिन, ताई-पिता से बड़े भाई की औरत, भानजी, स्त्री प्रमुख ने रांध्या होवे, सो पवित्रता से परोसा हुआ भोजन, उसको मौन करके दाहिना स्वर चलते खावे। जो जो वस्तु खावे, सो नासिका से सूंघ के खावे, इस से दृष्टिदोष नष्ट
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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