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जैनतत्त्वादर्श मी न रहना चाहिये। तथा स्त्री का अपमान न करे। स्त्री मूल जावे, तो शिक्षा देवे । रूस जावे, तो मना लेवे । तथा धन की हानि वृद्धि, घर का गुह्य, स्त्री के आगे प्रगट न करे । तथा क्रोध में आ करके दूसरी स्त्री न विवाहे, क्योंकि दो स्त्री करनी महादुःखों का कारण है। कदाचित् संतानादिक के वास्ते दो स्त्री भी कर लेवे, तदा दोनों पर समभाव से प्रवः । तथा स्त्री किसी काम में मूल जावे, तदा ऐसी शिक्षा देवे कि, फिर वो स्त्री उस काम को न करे । तथा रूसी स्त्री को जेकर नहीं मनावे, तो सोमभट्ट की भार्या अंबावत् कूवें में गिर पड़े, इत्यादि अनर्थ करे। इस वास्ते सी से सर्व काम, स्नेहकारी वचनों से करावे, न कि कठिनता से।
जेकर निर्गुण स्त्री मिले, तब विशेष करके नरमाई से प्रवर्ते, परन्तु स्त्री को घर में प्रधान न करे। जिस घर में पुरुष की तरें स्त्री प्रधानपना करे, वो घर नष्ट हो जाता है। यह कहना, बाहुल्य से है, क्योंकि कोई स्त्री तो ऐसी बुद्धिमती होती है कि, जेकर उसको पूछ के कार्य करे, तो बहुत गुण के वास्ते होता है। जैसे तेजपाल की भार्या अनूप देवी को तेजपाल अरु वस्तुपाल पूछ के काम करते थे। तथा स्त्री बब धर्मकार्यों में तप करे, चारित्र लेवे, उद्यापन करे, दान देवे, देवपूजा, तीर्थयात्रादि करे, तथा इन बातों के करने का मन में उत्साह घरे, तब धन देवे, सुशील सहायक दे के