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नवम परिच्छेद
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आप शिक्षा देवे, तथा भाई के मित्र पासों उलांभा दिलावे । तथा सगे सम्बन्धियों से शिक्षा दिलावे; काका से, मामा से, सुसरासे, इन के पुत्रों से अविनीत भाई को शिक्षा दिलावे, अन्योक्ति करके शिक्षा दिलावे, परन्तु आप तर्जना न करे । अरु जेकर आप तर्जना करे, तब क्या जाने निर्लज्ज हो कर निर्मर्याद हो जावे, सन्मुख बोल उठे। तिस वास्ते हृदय में स्नेह सहित ऊपर से जब भाई को देखे, तब ऐसे जान पड़े कि भाई मेरे ऊपर बहुत नाराज़ है । जब भाई विनयमार्ग में आ जावे, तदा निष्कपट मीठे वचन बोल के प्रेम बतावे । कदाचित् भाई अविनीतपना न छोड़े, तब चित में ऐसा विचारे कि इसकी प्रकृति ही ऐसी है, तब उदासीनपने से प्रवर्ते । तथा भाई की स्त्री अरु पुत्रों के साथ दान सन्मान देने में समदृष्टि होवे । तथा विमाता के पुत्र के साथ विशेष करके दान सन्मान प्रेमादि करे, क्योंकि उसके साथ थोड़ा भी अन्तर करे, तो उसको वेप्रतीति हो जावे, अरु लोगों में निन्दा होवे । ऐसे ही माता पिता अरु भाई के समान जो और जन है, तिनों के साथ भी यथोचित उचिता - चरण विचार लेना । यतः
जनकथोपकर्त्ता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति । अन्नदः प्राणदञ्चैव, पंचैते पितरः स्मृताः ॥ १ ॥