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जैनतत्त्वादर्श तथा औरों ने भी कहा है कि, जहां तक दूध पीवे, तहां तक यह अपनी माता है, ऐसे पशु जानते हैं, तथा जब तक सी की प्राप्ति नहीं हुई, तब तक अधम पुरुष माता जानते हैं, तथा जहां तक घर का काम करे, तहां तक मध्यम पुरुष माता जानते हैं, अरु तहां तक जीवे, जहां तक तीर्थ की तरे माता को उत्तम पुरुष मानते हैं । पशुओं की माता पुत्र से सुख मानती है । धन का उपार्जन करे तो मध्यम पुरुष की माता सुख मानते है। तथा पुत्र वीर होवे, संपूर्ण धर्माचरण से युक्त होवे, निर्मल चरितवाला होवे, तब उत्तम पुरुष की माता संतोष पाते है। ३. अथ सहोदर के साथ उचित आचरण लिखते हैं
बड़े माई को तो पिता समान जाने, अरु भाई से उचित छोटे भाई को सर्व कार्यों में माने । तथा व्यवहार जेकर दूसरी माता का बेटा होवे, तो जैसे
श्रीरामचन्द्र और लक्ष्मण की परस्पर प्रीति थी, तैसी प्रीति करना चाहिये। ऐसे ही बड़े माई अरु छोटे भाई की स्त्रियों के साथ तथा पुत्र पुत्रियों के साथ भी उचिताचरण यथायोग्य करे। पृथग्भाव न करे । माई को व्यापार में पूछे, उससे कोई छानी वात न रक्खे, तथा धन भी भाई से गुप्त न रक्खे। अपने भाई को ऐसी शिक्षा देवे, जिस से उसको कोई धूर्त न छल सके । जेकर भाई को खोटी संगति लग जावे, तथा अविनीत होवे, तदा