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________________ Quo जैनतत्त्वादर्श उत्सवमशनं स्नानं प्रगुणं चोपेक्ष्य मंगलमशेषम् । असमापिते च सूतकयुगेऽगनचौ च नो यायात् ॥ तथा दूध पीके, मैथुन करके, स्नान करके, अपनी स्त्री को मारपीट करके, वमन करके, थूक के, रुदन करके, कठिन शब्द सुन के, गालियां सुन के प्रदेश को न जावे । तथा सिर मुंडन करवा के, आंसु गिरा के, खोटे शुकन के हुये प्रामांतर को न जावे। ___तथा कार्य के वास्ते जब चले, तब कौनसा स्वर बहता होवे, उस पासे का पग पहिले उठा के धरे, जिस से कार्यशिद्धि होवे । तथा रोगी, बूढ़ा, ब्राह्मण, अंधा, गौ, पूजनिक, राजा, गर्भवती स्त्री, भार उठानेवाला, इन को कुछ दे कर आमांतर में जावे । तथा धान्य पक्का वा कच्चा पूजा योग्य मंत्रमंडल, इन को त्यागे नहीं। तथा स्नान का जल, रुधिर, मुरदा, थूक, श्लेष्म, विष्टा, मूत्र, बलती अग्नि, सांप, मनुष्य, शस्त्र, इन को उल्लंघे नहीं। तथा नदी के कांठे, गौओं के गोकुल में, बड़ वृक्ष के हेठ, जलाश्रय में, अरु कूप काठे में 'विष्टा न करे, तथा रात्रि को वृक्ष हेठ न रहे, उत्सव, सूतक पूरा हुये परदेश को जावे । विना साथ के न जावे, दास के 'साथ न जावे, मध्यान्ह में तथा अर्घ रात्रि में मार्ग में न चले। 'उथा क्रूर प्रकृतिवाला मनुष्य, कोटवाल, चुगल, दरजी, घोबी प्रमुख अरु कुमित्र, इतनों के साथ गोष्ठी न करे । इनों
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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