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नवम परिच्छेद
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नुबन्धी पुण्य से होती है। अतः जेकर कोई जीव पापानुबन्धी पुण्य के प्रभाव से इस लोक में सुखी भी दीखता है, तो भी अगले भव में महा आपदा को प्राप्त होगा । अरू ' जो महसूल की चोरी है, सो स्वामिद्रोह में हैं। यह चोरी इस लोक अरु परलोक में अनर्थ की दाता है। जिस में दूसरों को पीड़ा होवे, ऐसा व्यवहार न करे । यतः
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शाख्येन मित्रं कपटेन धर्म, परोपतापेन समृद्धिभावम् । सुखेन विद्यां परुषेण नारीं, बांछंति ये व्यक्तमपंडितास्ते ||
तथा जिस तरे लोगों को रागभाव होवे तैसे यत्न करे । यतः
जितेंद्रियत्वं विनयस्य कारणं, गुणप्रकर्षो विनयादवाध्यते । गुणप्रकर्पेण जनोऽनुरज्यते, जनानुरागप्रभवा हि संपदः ॥
तथा घनहानि, वृद्धि, संग्रहादि, गुह्य, दूसरों के आगे प्रकाश न करे । यतः
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स्वकीयं दारमाहारं सुकृतं द्रविणं गुणम् । दुष्कर्मम मन्त्रं च परेषां न प्रकाशयेत् ॥
तथा झूठ भी न बोले, जेकर राजा गुरु आदिक पूछे, तो सत्य कह देवे, सत्य बोलना ही पुरुषत्व की परम दशा है ।
तथा यथार्थ कहने से मित्र का मन हरे, तथा बांधव -