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नवम परिच्छेद
२६५ तथा एक, दो तीन, चार, पांच रुपये सैंकडे से अधिक व्याज न लेवे । किसी का गिर पड़ा धन न लेवे । तथा कालांतर में क्रयविक्रयादि में देशकालादि की अपेक्षा से उचित शिष्टजन अनिदित लाम होवे, सो लेवे । यह कथन प्रथम पंचाशकसूत्र में है । तथा खोटा तोल, खोटा माप, न्यूनाधिक वाणिज्य रस में मेलसंमेल न करे। वस्तु का अनुचित मोल, अनुचित व्याज, लंचा अर्थात् घूस, कोडवट्टी न लेवे। घिसा हुआ तथा खोटा रूपकादि किसी को खरे में न देवे। दूसरों के व्यापार में भंग न करे-ग्राहक न वहकावे । वानगी और न दिखावे, अंधेरा करके वस्तु न बेचे, जाली खत-पत्रादि न बनावे । इत्यादि परवंचनपने को वर्जे । सर्वथा प्रकारे व्यवहारशुद्धि करे, क्योंकि व्यवहारशुद्धि ही गृहस्थधर्म का मूल है।
तथा स्वामिद्रोह, मित्रदोह, विश्वासघात, वालद्रोह, वृद्धद्रोह और देवगुरुद्रोह न करे। तथा थापणमोसा न करे। ये सर्व महापाप के काम है, अतः इन को वर्ने । तथा कूड़ी साक्षी, रोप. विश्वासघात, कृतघ्नपना, ये चारों फर्म चण्डालपने के हैं, तिनको वर्जे । झूठ सर्व पापों से बड़ा पाप है, इस वास्ते झूठ सर्वथा न बोले। न्यास से धन उपार्जन करे।
जो अन्यायी लोग सुखी दीखते हैं, वो अन्याय से सुखी नहीं है। किंतु उनके पूर्वजन्म के पुण्य के फल से सुखी हैं, क्योंकि कर्मफल. चार तरे का है । जैसे कि श्रीधर्म