________________
२६२
जैनतत्त्वादर्श होवे वो बहुतों के साथ मिल कर लेवे। जहां स्वचक्र परचक्रादि का उपद्रव न होवे, अरु धर्म की सामग्री होवे, तिस क्षेत्र में व्यापार करे। ____ काल से तीन अट्ठाई और पर्वतिथि के दिन व्यापार न करे। जो वस्तु वर्षा काल के साथ विरोधी होवे, सो त्यागे। भाव से जो क्षत्रिय जाति का व्यापारी राजा प्रमुख होवे, तिसके साथ व्यापार न करे। अपने विरोधी को उधारा न देवे । तथा नट, विट, वेश्या, जुआरी प्रमुख को तो विशेष करके उधारा नहीं देवे। हथियारबंध के साथ तथा व्यापारी ब्रामण के साथ लेनदेन न करे। मुख्य तो अधिक मोल का गहना रख के व्याजु देवे, क्योंकि उससे मांगने का क्लेश, विरोध, धर्महानि, धनिरणादिक कष्ट नहीं होते हैं। जेकर ऐसे निर्वाह न होवे, तब सत्यवादी को व्याजु उधार देवे । व्याज भी एक, दो, तीन, चार, पांच प्रमुख सैकड़े पीछे महीने में भले लोक जिसको निंदे नहीं, ऐसा लेवे ।
जेकर देना होवे तदा करार पर बिना मांगे ही देना चाहिये। कदाचित् निर्धनपने से एक बार में न दे सके, तो किमत प्रमाणे तो ज़रूर दे देवे । क्योंकि देना किसीका न रखना चाहिये । यदुक्तम्
धर्माम्मे ऋणछेदे, कन्यादाने धनागमे । शनुपातेऽनिरोगे च, कालक्षेपं न कारयेत् ।।