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जनतत्वादर्श के अंतर्भूत ही हैं। परन्तु जेलखाने का दारोगादि, नगर का कोटवाल, सीमापाल इत्यादि नौकरी न करनी चाहिये, क्योंकि यह नौकरी निर्दयी लोगों के करने की है। तिस वास्ते श्रावक को नहीं करनी । जेकर कोई श्रावक राज्याधिकारी हो जावे, तो वस्तुपालादिक मन्त्रियों की तरें महाधर्म कीर्ति का करनेवाला होवे । श्रावक मुख्यवृत्ति करके तो सम्यग्दृष्टि की ही नौकरी करे। ___७. भीख मांगने से आजीविका है। सो भीख मांगने के भी अनेक मेद हैं । तिन में धर्मोपष्टंभ मात्र आहार, वख, पात्रादिक की भिक्षा लेवे । सो भी जिस साधु ने सर्व संसार और परिग्रह का संग त्यागा है, तिस को मांगनी उचित है। क्योंकि उसकी भीख मांगने के सिवाय और गति नहीं है। श्रीहरिभद्रसूरिजी ने पांचमे अष्टक में मिक्षा तीन प्रकार की लिखी है । प्रथम भिक्षा सर्वसंपत्करी, दूसरी पौरुषघ्नी, तीसरी वृत्तिमिक्षा है। जो साधु परिग्रह का त्यागी, धर्म ध्यान संयुक्त, जिनाज्ञासहित होने से षट्काय के आरम्भ से रहित है तिसकी मिक्षा सर्वसंपत्करी है । तथा जो साधु तो बन गया है, परन्तु साधु के गुण उसमें नहीं हैं, तथा जो गृहस्थावास में लष्टपुष्ट, षट्काय का आरम्भी, पडिमा वहे बिना का श्रावक तथा और गृहस्थ जो मांग के खावे, तिस की पौरुषघ्नी भिक्षा है। वो पुरुष धर्म की लाघवता का करनेवाला है, पूर्वजन्म में जिनाज्ञा का खण्डन करनेवाला