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बनिया हो।
जा करके बार में जावे,
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जैनतत्त्वादर्श कि सुरमें दानी में से थोड़ा थोड़ा अंजन निकलने से अंजन क्षय हो जाता है, तथा वर्मी का बन्धना । ऐसे परिश्रम अभ्यास करने से निष्फल दिन न जाने देवे। थोड़ी बुद्धि मी होवे तो भी पढ़ने का अभ्यास न छोड़े। इत्यादि धर्मकृत्य करके पीछे जेकर राजा श्रावक होवे,
तब तो राजसभा में जावे, प्रधान होवे, तो अर्थचिन्ता न्याय सभा में जावे, बनिया होवे तो हट्टी
बाजार में जावे, इत्यादि उचित स्थान में जा करके धर्म से विरुद्ध न होवे, उस रीति से धन उपा. जैन की चिन्ता करे। ___अब प्रथम राजा किस रीति से प्रवर्ते, सो लिखते हैं । जो राजा होवे, सो दरिद्री, मान्य, अमान्य, उत्तम, अषम आदि सर्व लोकों का पक्षपात रहित मध्यस्थ हो कर न्याय करे । राजा के कारभारी-मंत्री आदिक तिन का धर्माविरोध यह है, राजा का अरु प्रजा का नुकसान न होवे, तैसे प्रवर्ने । क्योंकि जो मन्त्री राजा का हित वांछता है, उस पर प्रजा द्वेष करती है, अरु जो प्रजा का हितकारी है, उसको राजा छोड़ देता है, इस वास्ते राजमन्त्री आदि को दोनों का हितकारी होना चाहिये।
वणिक् व्यापारी लोगों का धर्माविरोष यह है कि, व्यापार शुद्धि करे । यथा