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नवम परिच्छेद परलोक में बहुत गुण होता है।
तथा किसी साधु को रोगादि होवे तो गुरु से पूछे कि, वैद्य को बोलाऊं ! औषधि का योग मिलाऊं! इत्यादि गुरु और गच्छ की सर्व तरे से खबर-सार लेवे। भोजन के अवसर में उपाश्रय में जा कर के साधुओं को निमन्त्रणा करे । तथा औषधि पथ्यादि जो जिस को योग्य होवे, सो देवे । जब साधु श्रावक के घर में आवे, तब जो जो वस्तु साधु के योग्य होवे, सो सो सर्व वस्तु देने के वास्ते निमन्त्रणा करे। सर्व वस्तुओं का नाम लेवे, जेकर साधु नहीं भी लेवे, तो भी दाता को जीर्णशेठवत् पुण्य फल है। रोगी साधु की प्रतिचर्या करने से जीवानंद वैद्यवत् महापुण्य फल होता है । साधुओं के रहने को स्थान देवे, तथा जिनशासन के प्रत्यनीक को सर्वशक्ति से निवारण करे। तथा साधवियों की दुष्ट, नास्तिक, दुःशील जनों से रक्षा करे। अपने घर के पास बन्दोबस्तवाला गुप्त उपाश्रय रहने को देवे। उनों की अपनी स्त्री, बहु, बहिन, बेटी प्रमुख से सेवा-भक्ति करावे। अपनी बेटियों को साधवियों से विधा सिखलावे । जेकर किसी वेटी को वैराग्य चढ़े, तब साथवियों को दे देवे। जेकर कोई साधवी धर्मकृत्य भूल जावे, तदा स्मरण करा देवे । जेकर कोई साधवी अन्याय में प्रवृत्त होवे, तो निवारण करे। तथा आप रोज गुरु पासों नवीन नवीन शास्त्र पढे, जेकर बुद्धि थोड़ी होवे, - तदा ऐसा विचारे