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नवम परिच्छेद
२५१ लरे, १०. पीछे प्रत्याख्यान करे, ११. पीछे ' भगवन् अहं' इत्यादि चार खमासमण देवे, १२, पीछे स्वाध्याय सन्दिसावओ कहे । फिर खमासमणपूर्वक सज्झाय करूं, ऐसे कहे, पीछे स्वाध्याय करे, यह सवेर की वंदनविधि है। ___तथा प्रथम १. ईपिथ पडिक्कमे, २. पीछे चैत्यवंदना करे, ३. पीछे क्षमाश्रमण पूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करे, ४. पीछे दो वन्दना करे. ५. पीछे दिवसचरिम का प्रत्याख्यान करे, ६. पीछे दो वंदना करे, ७. पीछे देवसि आलोउं कहे, ८. पीछे दो वन्दना करे, ९. पीछे अन्मुहिउँ कहे, १० पीछे भगवन् इत्यादि चार स्तोमवन्दना करे, ११. पीछे देवसिक प्रायश्चित्त का कायोत्सर्ग करे, १२. पीछे पूर्ववत् दो खमासमण देकर स्वाध्याय करे, यह सन्ध्या की वंदन विधि है।
जेकर किसी कार्य में प्रवृत्त होने से गुरु का चित्त और तर्फ होवे, तदा संक्षेप मान वन्दना करे, ऐसे वन्दनापूर्वक गुरु पासों प्रत्याख्यान करावे । क्योंकि श्रावकप्रज्ञप्तिसूत्र में लिखा है कि, प्रत्याख्यान करने के परिणाम हढ़ भी होवे, तो मी गुरु के पासों करावे । गुरु पासों प्रत्याख्यान कराने में यह गुण है-१. दृढता होती है, २. आज्ञा का पालन होता है, ३. कर्म का क्षय होता है, ४. उपशम की वृद्धि होती है।
ऐसे ही देवसिक, चातुर्मासिक नियमादि भी गुरु का संयोग होवे तो गुरुसाक्षिक ही करने चाहिये। योगशास्त्र