________________
२४६
जैन तत्वादर्श
बिना भाड़ा दिये भी रहे, तो दोष नहीं । तथा तीर्थादिक में अरु देहरे में जो बहुत काल रहना पड़े, वहां सोवे, तो तहां भी लेखे के अनुसार अधिक भाड़ा देवे । थोड़ा देवे, तो दोष है । भाड़ा दिये बिने देव, ज्ञान और साधारण सम्बन्धी वस्त्र, नारियल, सोने रूपे की पाटी, कलश, फूल, पक्वान्न, सूखडी प्रमुख को उजमने में, पुस्तक पूजा में, नन्दी मांडने में, न मेलना चाहिये। क्योंकि उजमणादि तो उसने अपने नाम का करा है । फिर देव, ज्ञान अरु साधारण सम्बन्धी पूर्वोक्त वस्तु भाड़े बिना वर्ते, तो स्पष्ट दोष है ।
बड़े
मन्दिर में भी
तथा घर देहरे में अक्षत, सोपारी, फल, नैवेद्यादि के बेचने से जो धन होवे, तिस से खरीदे हुए फूलादिक को घर देहरे में न चढ़ावे, तथा पंचायती आप न चढ़ावे । पूजारी के आगे सर्व स्वरूप कहे कि, यह मन्दिर ही का द्रव्य है, मेरा नहीं । पूजारी न होवे, तो संघ के समक्ष कह देवे । यदि न कहे, तो दूषण है । घरदेहरे का नैवेद्यादि माली को देवे, परन्तु उसको माली पहिले ही सामग्री नोकरी
की नौकरी में न गिन लेवे जेकर
मुख्यवृत्ति से तो नौकरी
में देनी कर लेवे, तो दोष नहीं
।
चढ़ावे से अलग देनी चाहिये ।
घर देहरे के चढे हुए चावलादि बड़े मन्दिर में भेज देवे, अन्यथा घर देहरे के द्रव्य से घर देहरे की पूजा होवेगी, स्वद्रव्य से नहीं होवेगी । यदि करे तो अनादर, अवज्ञादि