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नवम परिच्छेद जावे, तो महापाप होवे। देव के आगे दीवा बाल के उस दीवे के चानणे में कोई सांसारिक काम करे, तो मर के तिर्यच होवे । इस वास्ते देव के दीवे से खत-पत्र भी न वांचना चाहिये । रूपक भी न परखना । घर का काम भी देव के दीवे से न करना । तथा देव के चंदन, केसर से तिलक न करे । देव के जल से हाथ न धोवे, स्नात्रजल भी थोड़ा सा लेना चाहिये। तथा देव संबंधी अल्लरी, मृदंग, मेरी प्रमुख गुरु के तथा संघ के आगे न बजावे । जेकर कोई देव के उपकरण अल्लरी आदिक से कोई कार्य करना होवे तो बहुत निकराना देव के आगे रखके लेवे, कदाचित् कोई उपकरण टूट जावे, तब अपना धन खरच के नवा बनवाने, देव का दीवा लालटैन, फानूम प्रमुख को जुदा ही राखे । तथा साधारण द्रव्य से जो झल्लरी प्रमुख बनावे, और सर्वधर्मकार्य में वर्ते तो दोष नहीं जैसे भावों से करे, सोई प्रमाण है।
देव का तथा ज्ञान का घर आदिक भी श्रावक को निःशूकतादि दोष होने से माड़े लेना न चाहिये । साधारण संबंधी घर आदि को संघ की अनुमति से लोक व्यवहार का माड़ा देकर वरते, तो दोष नहीं; परन्तु भाड़ा करार के दिन में स्वयमेव दे देवे। उस मकान के समराने में जो धन लगे, तिस को भाड़े में गिन लेवे; तो दोष नहीं। अरु जो साधर्मी संकट-निधनपने से दुःखी होवे, वो संघ की आज्ञा से