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नवम परिच्छेद चेहअदवं साहारणं च, जो दहइ मोहिअमईओ। धम्म च सो न याणा, अहवा बद्धाउओ नरए । अर्थ:-चैत्यद्रव्य तथा साधारण द्रव्य को नाश करे,
या तो वो धर्म नहीं जानता है, अथवा उसने देवादि सम्बन्धी नरक का आयु बांधा है। इस वास्ते ही ऐसा द्रव्य अयोग्य काम करता है। तथा चैत्यद्रव्य का
नाश, भक्षण, उपेक्षण कोई करे, तिसको जेकर साधु न हटावे, तो वो साधु भी अनंतसंसारी हो जावे।
प्रश्न:-मन, वचन अरु काया करके जिसने सावध कर्म को त्यागा है, ऐसे यति को चैत्यद्रव्य की रक्षा में क्या अधिकार है !
उत्तर:-जेकर राजा तथा वज़ीर को याचना करके, तिनों के पास से घर, हाट, गामादि लेकर विधि से नवीं पैदायश-उत्पन्न करे, तब तो यह विवक्षित दूषण आ सकता है, परन्तु किसी-यथा भद्रकादि ने धर्म के वास्ते पहिले दिया होवे उसका नाश देखकर रक्षा करे, तो कोई दूषण नहीं होता है, बल्कि जिनआज्ञा की आराधना होने से धर्म की पुष्टि होती है।
तथा नवे मन्दिर के बनाने से जो पूर्व बना हुआ है, उसके प्रतिपंथी अर्थात् शत्रु को जो साधु हटावे तो उस